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संस्कृत शिक्षा विभाग एक परिचय
संस्कृत भाषा भारत की आध्यात्मिक चेतना
की जीवन रेखा है। यह महज एक भाषा नहीं है अपितु यह भारत की जीवन शैली है। भारतीय
शास्त्र प्राचीन काल से ही समृद्ध है ऐसे में संस्कृत विश्व-शांति और मानव-जाति की
समृद्धि के दिव्य संदेश चिरकाल से देती आ रही है। राजस्थान राज्य में अब तक बनी
राज्य सरकारों द्वारा संस्कृत भाषा को काफी महत्व दिया गया है। यहां प्रधान सचिव
का एक अलग पद के सृजन, संस्कृत शिक्षा संस्कृत शिक्षा के विकास के लिए
राज्य सरकार के संकल्प को दिखाता है। विभागीय संस्थानों में न्याय दर्शन, मीमांसा,
सांख्य
योग, पुरोहित, जैन दर्शन, वास्तु शास्त्र,
सामुद्रिक
शास्त्र, रामानुजन और निम्बार्क, वेदांत दर्शन सहित संस्कृत विषयों की
एक विस्तृत विविधता, ज्योतिष आदि जो कि एक विस्तृत रूप से हमारे
भविष्य के अनुसंधान को प्रभावित करती है इन सभी का अध्ययन अध्यापन एवं शोध होते
है।
सम्पूर्ण भारतवर्ष में राजस्थान एक
मात्र ऐसा प्रदेश है जंहां संस्कृत शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए राज्य सरकार
स्तर पर पृथक से संस्कृत मंत्रालय है तथा संस्कृत विभाग हेतु पृथक से ही सचिवालय
स्थापित है। संस्कृत एक जीवन्त भाषा है। यह भारत की आत्मा है ।
संस्कृत हमारे प्राचीन इतिहास को
वर्तमान से जोडती है तथा भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती है । विज्ञान से पहले ज्ञान
का प्रादुर्भाव हुआ और यह ज्ञान संस्कृत भाषा मे निहित है । संस्कृत शिक्षा विभाग
ने वर्ष 1958 में राजस्थान की राजधानी जयपुर में अपना
निदेशालय कार्यालय स्थापित किया गया था इसके साथ, वर्तमान में
विभाग के सात संभागीय संस्कृत शिक्षा अधिकारी कार्यालय राज्य के संभागीय
मुख्यालयों पर स्थित है।
संस्कृत षिक्षा विभाग राजस्थान की एक
विशेष पहचान भी है कि यह विभाग रक्षाबन्धन श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के
रूप मनाता है। इस संस्कृत दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य ही यह है कि संस्कृत
भाषा को आमजन की भाषा बनाने हेतु जनसाधारण में जागृति पैदा की जाए। संस्कृत दिवस
के साथ ही संस्कृत सप्ताह भी मनाया जा रहा है जिसमें प्रतिदिन संस्कृतमय वातावरण
में संस्कृत भाषा पढी एवं बोली जाती है।
जयतु संस्कृतम। जयतु भारतम् ।
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